शेर और चूहा
एक शेर था बन में सोया
सपनों की दुनिया में खोया।
चूहा एक वहाॅ॑ पर आया
देख शेर को वह हर्षाया।
लगा शेर के ऊपर चढ़ने
साहस लगा अचानक बढ़ने।
कभी दौड़ता आगे पीछे
कभी चढ़े ऊपर फिर नीचे।
तभी अचानक नाहर जागा
चूहा उतरा नीचे भागा।
शेर ने एक झपट्टा मारा
उसके आगे चूहा हारा।
चूहे ने अपना मुंह खोला
हाथ जोड़कर फिर वह बोला।
"भूल हुई है मुझसे भारी
क्षमा करो हे बन अधिकारी।"
जीवनदान अगर पाऊंगा
काम आपके मैं आऊंगा।
बन का राजा हॅ॑स कर बोला
क्या तू समझे मुझको भोला।
तू निर्बल है छोटा प्राणी
नाहक है यह तेरी वाणी।
मदद कहां तू कर पाएगा
डरकर बिल में घुस जाएगा।
फिर भी छोड़ रहा हूॅ॑ तुझको
शक्ल नहीं दिखलाना मुझको।
जान बची चूहे की ऐसे
लगा भागने जैसे तैसे।
एक दिन एक शिकारी आया
बन में उसने जाल बिछाया।
वही शेर जब आगे आया
फॅ॑सा जाल में समझ ना पाया।
हार गया सब जतन लगाया
मगर जाल से निकल न पाया।
कौन बचाए सोच ना पाया
चूहा दिखा सामने आया।
चूहे ने हंसकर मुह खोला
बड़े भाव से फिर वह बोला।
बाल न बाॅ॑का होने दूॅ॑गा
जाल दाॅ॑त से मैं काटूॅ॑गा।
काट जाल दाॅ॑तों से डाला
अंधियारे में किया उजाला।
शेर मुक्त हो बाहर आया
फिर चूहे को गले लगाया।
दोनों में तब हुई मिताई
चूहे की मानी प्रभुताई।
सीख
लघुता की प्रभुता पहचाने।
कमतर नहीं किसी को माने।
हरिशंकर पांडेय "सुमित"
1 टिप्पणी:
प्यारे मासूम बच्चों के लिए यह बाल कविता अत्यंत लुभावनी सिद्ध होगी
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